राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा- गुरुनानक
अध्याय 1
सरलार्थ-जो मनुष्य अपने दुःखी नहीं होता है। सुख-स्नेह और भय भी जिसको प्रभावित नहीं करता है, जो दूसरे के धन को माटी मानता है, जिसे निन्दा, प्रशंसा, लोभ, मोह और अभिमान प्रभावित नहीं करता है जिसको हर्ष या शोक प्रभावित नहीं करता है, जो मान अपमान नहीं समझता है, जो मन से आशा, तृष्णा आदि सब कुछ त्यागकर देता है तथा जो सांसारिक माया से मुक्त रहता है जिसको काम, क्रोध आदि स्पर्श भी नहीं करता है। ऐसे व्यक्ति के ही हृदय में ईश्वर का निवास होता है। जिस व्यक्ति पर गुरु की कृपा हो जाती है वही व्यक्ति इस रहस्य को जान सकता है। गुरु नानक कहते हैं कि ईश्वर भक्ति में इस प्रकार लीन हो जाओ जैसे नदी का पानी समुद्र के पानी में मिलकर लीन हो जाता है।
1. पद में प्रयुक्त निम्नलिखित शब्दों के मानक आधुनिक रूप लिख-
प्रश्नोत्तर विरथे = व्यर्थ । बिखु = विष । निहफल = निष्फल । मटि = मति । संघिआ-संध्या-गायत्री । करम = कर्म । गुरुसवद गुरुवाणी । तीरथ नवनु = तीर्थ गमन। मही अल, = महीतल । सरब = सब, सर्व । माटी = मिट्टी । अस्तुति = स्तुति । नियारो = न्यारा । जुगति- युक्ति। पिछानी = पहचानी ।
2.शब्द निधि:
मटि = मति, बुद्धि । संधिआ-संध्या, संध्याकालीन उपासना । गुरसबद = गुरु का उपदेश । विरथे = व्यर्थ हो । जगि = संसार में । बिखु = विष । नावै = नाम । निहफलु = निष्फल । अरुझि - उलझकर । डंड = दंड (साधु लोग जिसे वैराग्य के चिह्न के रूप में धारण करते हैं)। सिखा = चोटी । सूत = जनेऊ । जीअ = जीव । जंत = जंतु, प्राणी । महीअल = महीतल, धरती पर । कंचन = सोना । अस्तुति = स्तुति, प्रार्थना । नियारो = न्यारा, अलग, पृथक् । परसे = स्पर्श । घट = घड़ा (प्रतीकार्थ - देह, शरीर) । जुगति = युक्ति, उपाय । पिछानी = पहचानी ।
व्याख्या करें—(क) राम नाम बिनु अरुझि मेरे।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश हमारे पाठ्य पुस्तक "गोधूली" भाग-2 के काव्य (पद्य) खण्ड के "राम नाम विनु बिरथे जगि जनमा" पद्य से लिया गया है जिसके रचयिता "गुरु नानक" जी हैं। कवि ने राम नाम की महिमा का वर्णन करते हुए कहा है कि संसार-सागर से पार उतरने ' का सबसे सरल-सुगम उपाय राम के नाम को स्मरण करना है । जो व्यक्ति ईश्वर के नाम को नहीं जपता है वह इस संसार के माया जाल में उलझकर मर जाता है।
(ख) कंचन माटी जाने ।
उत्तर—प्रस्तुत पद्यांश हमारे पाठ्य पुस्तक “गोधूली" भाग-2 के काव्य (पद्य) खण्ड के .गुरु नानक जी हैं। "जो नर दुःख में दुख नहिं मानै" पद से लिया गया है जिसके रचयिता सिख सम्प्रदाय के प्रथम इस पद में कवि ने बताया है कि जिस व्यक्ति को दुख-दुखी नहीं करता, जिसे सुख, स्नेह, भय आदि प्रभावित नहीं करते हैं वह व्यक्ति दूसरे के सोना आदि घन को माटी के समान समझता है। वस्तुत: जिसकी सांसारिक इच्छा समाप्त हो जाती है वह व्यक्ति सोना को भी मिट्टी मानता है।
(ग) हरष सोक तें रहै नियारो, नहि मान अपमाना।
उत्तर–प्रस्तुत पोक्त हमारे पाठ्य पुस्तक "गोधूली" भाग-2 काव्य (पद्य) खण्ड के "जो नर दुख में दुख नहिं मानै" पद से ली गयी है जिसके रचयिता "गुरु नानक" जी हैं। गुरु नानक ने गुरु उपदेश की महिमा का वर्णन करते हुए कहा है कि जिस पर गुरु के उपदेशों का प्रभाव पड़ता है उस व्यक्ति को, सुख-दुःख, हर्ष-शोक इत्यादि सांसारिक बाधाएँ प्रभावित नहीं करतीं । इस प्रकार के व्यक्ति को मान-अपमान का भी प्रभाव नहीं पड़ता है।
(घ) नानक लीन भयी गोविन्द सो, ज्यों पानी संग पानी।
उत्तर–प्रस्तुत पद्यांश हमारे पाठ्य पुस्तक गोधूली भाग-2 के काव्य (पद्य) खण्ड के "जो नर दुख में दुख नहिं मान" पद से लिया गया है जिसके रचयिता गुरु नानक जी हैं। इस पद्य में नानक जी ने कहा है कि मैं नानक भगवान गोविन्द की ऐसी भक्ति में लीन होना चाहता हूँ जैसे-नदियों का पानी समुद्र के पानी में मिलकर लीन हो जाता है। वस्तुतः यथार्थ ईश्वर भक्ति हरि के नाम कीर्तन में लीन होना ही है तथा भक्ति की तल्लीनता वैसी हो जैसे- नदियों का पानी समुद्र के पानी में मिलकर समुद्र के पानी जैसा हो जाता है।
9. आधुनिक जीवन में उपासना के प्रचलित रूपों को देखते हुए नानक के इन पदों कीक्या प्रासंगिकता है? अपने शब्दों में विचार करें।
उत्तर–आधुनिक जीवन में उपासना के जो भी प्रचलित रूप हैं वे सभी कर्मकाण्ड से सम्बन्ध रखते हैं। आज के भाग-दौड़ के जीवन में कर्म काण्ड पर आधारित उपासना के उपाय में सभी लोगों को सफल होना कठिन है। आज ईश्वर की उपासना खर्चील है क्योंकि धन से धर्म किया जाता है जो जन साधारण के वश की बात नहीं है। ऐसे समय में गुरु नानक द्वारा रचित पद में जो उपासना के रूप को बताया गया है। उसी की प्रासंगिकता है। गुरु के उपदेशों का अनुकरण कर हरि के नाम कीर्तन सभी व्यक्ति से सम्भव है। इसके लिए न समय सीमा का विचार है और नहीं खर्च की बात है। अत: हमारे विचार से गुरु नानक जी के बताएँ मार्ग से ईश्वर की उपासना सबों के लिए सरल और युक्तिसंगत है।
भाषा की बात
1. दोनों पदों में प्रयुक्त सर्वनामों को चिह्नित करें और उनके भेद बताएँ।
उत्तर-जत्र = अनिश्चयवाचक सर्वनाम ।
तत्र - अनिश्चयवाचक सर्वनाम ।
सरव = पुरुषवाचक सर्वनाम ।
सकल = पुरुषवाचक सर्वनाम ।
तिन्ह = पुरुषवाचक सर्वनाम ।
2. निम्नलिखित शब्दों के वाक्य प्रयोग करते हुए लिङ्ग निर्णय करें-
जग = जग. विशाल है। मुक्ति = मुक्ति मिल गई । घोती = घोती फटी है। जल = जल मीठा है। भस्म = जलकर भस्म हो गया । कंचन = कंचन । जुगति = जगति मिल गई। स्तुति = स्तुति की गई।
3. निम्नलिखित विशेषणों का स्वतंत्र वाक्य प्रयोग करें-
व्यर्थ = व्यर्थ काम मत करो । निष्फल = किया हुआ निष्फल नहीं होता । नग्न = नग्न चित्र नहीं देखो। सर्व = सर्वदेशीय ईश्वर है। न्यारा. = भारत न्यारा देश है। सकल = सकल मनोरथ पूरा होगा।
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