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हमारी वित्तीय संस्थाएं (अध्याय 4 )

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प्रेम अयनि श्री राधिका -रसखान

प्रेम अयनि श्री राधिका -रसखान
इस दोहे में रसखान भगवान श्रीकृष्ण और राधिका जी के युगल स्वरूप को प्रेम का खजाना कहा है। अर्थात् राधा कृष्ण के युगल स्वरूप की जो भक्ति करता है उसे भगवान श्रीकृष्ण अपने रंग में रंगकर प्रेममय कर देते हैं।

रोजगार एवं सेवा

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अध्याय 5

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बुधवार, 9 दिसंबर 2020

अध्याय 4. स्वदेशी -बद्रीनारायण चौधरी 'प्रेमघन" (गोधूलि 10)

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अध्याय 4.

स्वदेशी

                     -बद्रीनारायण चौधरी 'प्रेमघन"


शब्द निधि : 
गति स्वभाव । रति = लगाव । रीति = पद्धति । मनुज भारती = भारतीय मनुष्य । क्रिस्तान क्रिश्चियन, अंग्रेज । बसन = वस्त्र । बानक = बाना, वेशभूषा । खामखयाली चारहु बरन = चारों वर्णों में । डफाली = डफ बजानेवाला, बाजार बजाने वाला । कोरी कल्पना ।

सबै बिदेसी वस्तु नर, गति रति रीत लखात । 
भारतीयता कछु न अब, भारत में दरसात ।। 1।।
अर्थ -भारत में भारतीयता नाम की कुछ नहीं बचा है। यहाँ के लोगों के स्वभाव, रीति-रिवाज सभी पक्षों में विदेशी वस्तुओं से लगाव हो गया है। 

मनुज भारती देखि कोउ, सकत नहीं पहिचान ।

मुसल्मान, हिंदू किधौं, के हैं ये क्रिस्तान ।।2।।

अर्थ-देखकर कोई पहचान नहीं कर सकता है कि यह आदमी भारतीय है। क्योंकि
मुसलमान हिन्दू सभी अंग्रेज जैसे लगने लगे हैं।
पढ़ि विद्या परदेस की, बुद्धि विदेसी पाय । 
चाल-चलन परदेस की, गई इन्हें अति भाय ।।3।।
अर्थ विदेशी विद्या पढ़कर और विदेशी बुद्धि पाकर इनको (भारतवासियों को) विदेशी चाल-चलन बहुत अच्छा लगने लगा है।
ठटे बिदेसी ठाट सब, बन्यो देस बिदेस l 
सपनेहूँ जिनमें न कहुँ, भारतीयता लेस ।।4।।
अर्थ-विदेशी ठाट में बस सज गये हैं। देश भी विदेश जैसा लगने लगा है सपना में भी भारत के लोगों में भारतीयता नाम की कोई चीज नहीं बची है।
बोलि सकत हिंदी नहीं, अब मिलि हिंदू लोग । 
अंगरेजी भाखन करत, अंगरेजी उपभोग ।।5।।
अर्थ -  अब हिन्दू लोग भी परस्पर हिंदी में बात नही करते है l अंग्रजी बोलना और अंग्रजी वस्तु का उपयोग करना की भारतीयों को आच्छा लगता है l
अंगरेजी बाहन, बसन, वेष रीति औ नीति । 
अंगरेजी रुचि, गृह, सकल, बस्तु देस विपरीत ।।6।।
अंग्रेजी, वाहन, गोजी वस्त्र, अंग्रेजी वेशभूषा, अग्रेजी रीति-रिवाज, अंग्रेजी विचार,अंग्रेजी रुचि, मोजी भर आदि सभी चीजें देशी के विपरीत विदेशी लोगों को अच्छा लगने लगा है । 
हिन्दुस्तानी नाम सुनि, अब ये सकुचि लजात । 
भारतीय सब वस्तु ही, सों ये हाय घिनात ।। 7।।
अर्थ- हिन्दुस्तानी नाम सुनकर ही भारत के लोग लज्जित हो जाते हैं। भारतीय सभी वस्तु से भारतवासियों को घृणा हो गयी है।
देस नगर बानक बनो, सब अंगरेजी चाल । 
हाटन मैं देखहु भरा, बसे अंगरेजी माल ।। 8 ॥
अर्थ -सम्पूर्ण देशवासी की वेशभूषा शहरी हो गयी है सारे चाल-चलन में अंग्रेजीपन आ गया है। हजारों (ग्रामीण बाजारों) में अब केवल अंग्रेजी माल ही भरे दिखाई पड़ते हैं।
जिनसों सम्हल सकत नहिं तनकी, धोती ढीली-ढाली । 
देस प्रबंध करिहिंगे वे यह, कैसी खाम खयाली ।॥9 ॥
अर्थ - जिन नेताओं को शरीर की ढीली-ढाली भारतीय धोती संभाल में नहीं आती है वो देश का शासन सम्भाल लेंगे, यह तो उनकी कोरी कल्पना (ख्याली पुलाव बनाने) जैसी है। 
दास-वृत्ति की चाह चहूँ दिसि चारहु बरन बढ़ाली । 
करत खुशामद झूठ प्रशंसा मानहुँ बने डफाली ।।10।।
अर्थ- गुलामी कर के जीवन यापन करना ब्राह्मण क्षेत्रीय शद्र-वैश्य चारो वरणों के लोगों की चाहत हो गई है। अंग्रेजों की खुशामद करने वाले, भारतीय वस्तु की झूठी प्रशंसा करने वाले ये भारतीय मानो डफली बजाने वाले बन गये हों।

बोध और अभ्यास
कविता के साथ

1. कविता के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए। उत्तर "स्वदेशी" शीर्षक सार्थक है क्योंकि इस कविता में स्वदेशी लोगों को स्वदेशी वस्तुओं से नफरत जैसी हो गयी है। अपने देश के नाम सुनकर यहाँ के लोग लज्जा अनुभव करते हैं । सम्पूर्ण कविता में स्वदेशी वस्तु से अलग भारतीयों को दिखाया गया है अत: "स्वदेशी" शीर्षक यथार्थ है।
2. कवि को भारत में भारतीयता क्यों नहीं दिखाई पड़ती ?
 उत्तर भारत के लोगों का स्वभाव, रीति-रिवाज, लगाव सब अंग्रेजी जैसा हो गया है हिन्दू हो या मुसलमान सभी अंग्रेज जैसे दिखाई पड़ते हैं। भारतीयों को पहचान पाना भी मुश्कल हो गया है। विदेशी पढ़ाई, विदेशी बुद्धि विदेशी चाल-चलन ही सर्वत्र दिखाई पड़ता है। बाजार में भी सब जगह विदेशी वस्तु ही पसरे दिखते हैं इस प्रकार कवि को भारत में भारतीयता कहीं नजर नहीं आती है।
3. कवि समाज के किस वर्ग की आलोचना करता है और क्यों ? 
उत्तर- कवि समाज के प्रबुद्ध वर्ग की आलोचना करता है क्योंकि प्रबुद्ध वर्ग कहलाने वाले भारतीय लोग विदेशी विद्या पढ़कर, विदेशी बुद्धि पाकर अपने चाल-चलन को भी छोड़ दिये हैं। उनको विदेशी चाल-चलन ही अच्छा लगने लगा है अर्थात् प्रबुद्ध वर्गीय लोगों में भारतीयता नाम की चीज कहीं नहीं दिखाई पड़ती है। 
4. कवि नगर, बाजार और अर्थव्यवस्था पर क्या टिप्पणी करता है ?
उत्तर कवि भारत के नगर, बाजार और अर्थव्यवस्था पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि सब पर विदेशी वस्तु हावी हो गया है। सब जगह विदेशी वस्तु ही बिक रहे हैं। स्वदेशी वस्तु नगर, बाजार, कहीं भी नहीं दिखने के कारण अर्थव्यवस्था ही बिगड़ गयी है।
5. नेताओं के बारे में कवि की क्या राय है ?
उत्तर भारतीय नेताओं के बारे में कवि की राय है कि जब इन नेताओं को भारतीय ढीली-दाली धोती नहीं संभलता है तो फिर ये लोग देश की बागडोर की कैसे संभाल पाएँगे।
6. कवि ने "डफाली" किसे कहा है और क्यों ?
उत्तर- कवि ने भारतीय उन लोगों को "उफाली" कहा है जो भारतीय वर्ण व्यवस्या को मानते हैं। क्योंकि ये लोग गुलामी करके ही जीना चाहते हैं। अंग्रेजों की खुशामद करते है तथा अपने स्वदेशी वस्तुओं की झूठी प्रशंसा करते हैं।
7. व्याख्या करें-(क) मनुज भारती देखि कोउ, सकत नहीं पहिचान ।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश हमारे पाठ्य पुस्तक " गोधूली" भाग- 2 के स्वदेशी शीर्षक कविता मे लिया गया है। इस कविता के कवि बदरी नारायण चौधरी "प्रेमघन" जो हैं। इस कविता में कवि ने बताया है कि "स्वदेशी" वस्तु हम भारतीय के बीच से उठता जा रहा है। विदेशी विद्या, विदेशी बुद्धि के प्रभाव से हमारी चाल-चलन, वेश-भूषा खान-पान सब पर विदेशी वस्तु हावी हो गई है हम भारतीय विदेशी वस्तुओं के प्रयोग से इतने बदल गये हैं कि "मनुज भारती देखि कोउ, सकत नहीं पहिचान" अर्थात् भारतीय मनुष्य को देखकर कोई नहीं पहचान सकता है कि यह भारतीय नागरिक है,।
(ख) अंग्रेजी रुचि, गृह, सकल वस्तु देस विपरीत ।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश हमारे पाठ्य पुस्तक "गोधूली" भाग-2 के काव्य (पद्य) खण्ड के "स्वदेशी" शीर्षक पाठ से लिया गया है। इस पाठ के कवि "बदरी नारायण चौधरी 'प्रेमघन" जी हैं। "प्रेमघन" जी भारतीय लोगों के द्वारा स्वदेशी वस्तु के अनुपयोग से व्यथित हृदय होकर कहते हैं-" अंगरेजी रूचि, गृह सकल वस्तु देस विपरीत" अर्थात् अंग्रेजी वस्तु में रुचि बढ़ जाने से हमारे घर में सकल वस्तु विदेशी दिखाई पड़ने लगा है जो भारत के विपरीत है ।
8. आपके मत से स्वदेशी की भावना किस दोहे में सबसे अधिक प्रभावशाली है ? स्पष्ट करें। 
उत्तर-हमारे मत से स्वदेशी की भावना सबसे अधिक प्रभावशाली दोहे नं० 3 है जिसमें कवि ने कहा है कि पढि विद्या परदेश की, बुद्धि विदेसी पाप । अर्थात् अंग्रेजी शिक्षा और अंग्रेजी बुद्धि पाकर भारतीय लोगों को परदेशी चाल-चलन हो अच्छा लगने लगा है। चाल-चलन परदेस की गई इन्हें अति भाव ।। अर्थात् अंग्रेजी शिक्षा और अंग्रेजी बुद्धि पाकर भारतीय लोगों को परदेशी चाल-चलन ही अच्छा लगने लगा है।


भाषा की बात

1. निम्नांकित शब्दों से विशेषण बनाएं
उत्तर रुचि = रुचिकर । देस = देशी । नगर 3 नगरीय । प्रबंध - प्रबंधन। ख्याल - ख्याली । दासता = दास । झूठ = झुठा । प्रशंसा = प्रशंसनीय ।
2. निम्नांकित शब्दों का लिंग-निर्णय करते हुए वाक्य बनाएँ उत्तर- चाल-चलन (स्त्री)-राम की चाल-चलन बिगड़ गई है।
खाम ख्याली (स्त्री.)-तुम कैसी खाम खयाली करते हो। खुशामद (स्त्री)-उसकी खुशामद मत करो ।
माल (पुलिङ्ग)-माल बिक गया। वस्तु (स्त्री)- वस्तु बाजार में बिकती है। वाहन (स्त्री०)-वाहन बिगड़ गई।
रीत (स्त्री)--हमारी रीत पुरानी है। हाट (पु.)-गाँव-गाँव में हाट लगता है ।
दास वृत्ति (स्त्री)- दास वृत्ति अच्छी नहीं है।
बानक (पु.)- तुम्हारा बानक बिगड़ गया है।
3. कविता से संज्ञा पदों का चुनाव करें और उनके प्रकार भी बताएँ ।
उत्तर नर = जातिवाचक संज्ञा । मनुज = जातिवाचक संज्ञा । मुसलमान - जातिवाचक संज्ञा । हिन्दु = जातिवाचक संज्ञा । अंगरेजी  व्यक्तिवाचक संज्ञा। वाहन -जातिवाचवक संज्ञा । रुचि = भाववाचक संज्ञा । नगर = जातिवाचक संज्ञा । अंग्रेजी चाल = व्यक्तिवाचक । अंग्रेजी माल = व्यक्तिवाचक । दासवृत्ति = भाववाचक ।
समाप्त

मंगलवार, 8 दिसंबर 2020

एक लेख एक पत्र' (भगत सिंह )

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'एक लेख एक पत्र'

भगत सिंह  

( सारांश)

अमर शहीद भगतसिंह आधुनिक भारतीय इतिहास की एक पवित्र स्मृति हैं। देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर देने वाले हजारों लोगों तथा लाखों स्वाधीनता सेनानियों की प्रेरणा और उत्सर्गपूर्ण कार्यों के वे स्थायी प्रतीक और प्रतिनिधि हैं । राष्ट्रीयता, देशभक्ति, क्रांति और युवाशक्ति के वे प्रेरणापुंज प्रतीक हैं। भगत सिंह विद्यार्थियों को राष्ट्र के विकास का महत्वपूर्ण कारण मानते हैं। उनका विचार है कि छात्रों को अपने दायित्व का निर्वाह पूर्ण निष्ठा से करना चाहिए । सच्ची लगन, निष्ठा. सच्चरित्रता एवं नैतिक गुणों को अपने जीवन का आदर्श बनाना चाहिए तथा उन्हें अपनी पढाई पर पूरा ध्यान देना चाहिए । राष्ट्र को परतन्त्रता की बेड़ियों से मुक्त कराना भी एक प्रकार से उनकी शिक्षा का एक अंग है। भगत सिंह के शब्दों में, "यह हम मानते हैं कि विद्यार्थियों का 1. मुख्य कार्य पढ़ाई करना होता है, उन्हें अपना पूरा ध्यान उस ओर लगा देना चाहिए, लेकिन क्या देश की परिस्थितियों का ज्ञान और उनके सुधार के उपाय सोचने की योग्यता पैदा करना उस शिक्षा में शामिल नहीं है । " अर्थात् उन्होंने अपना स्पष्ट मत प्रकट किया है कि विद्यार्थियों को अपनी पढ़ाई के साथ-साथ राजनीति में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना चाहिए ।
                                            अभिभावकीय दृष्टिकोण वाले लोग यह राय प्रकट करते हैं कि छात्रों को राजनीति से अलग रहना चाहिए क्योंकि उनका काम पढ़ाई करना और अपनी योग्यता को बढ़ाना है, राजनीति में उलझना नहीं। किन्तु यह विचार पूर्णतया अव्यवहारिक एवं निरर्थक है । छात्र एवं युवाशक्ति राष्ट्र की रीढ़ होते हैं। महान स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह विद्यार्थियों का राजनीति में योगदान अपरिहार्य मानते थे। उनका कहना था कि विद्यार्थियों को अपनी पढ़ाई तन्मयता से करते हुए देश के हित में भी सक्रिय योगदान करना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर तन-मन-धन से देश की सेवा में सक्रिय भाग लें तथा अपने जिस प्रकार भगत सिंह इस पुनीत कार्य में जुट गए हैं । इस प्रकार भगत सिंह का विद्यार्थियों के प्रति स्पष्ट मत है कि उन्हें विद्याध्ययन के साथ ही देश की स्वतंत्रता एवं सम्पन्नता की दिशा में ठोस कार्य करने चाहिए । इस कार्य हेतु उन्हें आत्म-बलिदान के लिए भी तत्पर रहना चाहिए । 
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बुधवार, 4 नवंबर 2020

अति सूधो सनेह को मारग है -घनानंद (वर्ग 10)

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अति सूधो सनेह को मारग है। 
   (प्रेम का मार्ग अति सरल है।)  

पद-परिचय—इस सवैये में प्रेम के मार्ग को सरल बताते हुए कहा है कि इसमें कोई खर्च नहीं लेकिन सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है।

भावार्थ—प्रेम का मार्ग अत्यन्त सरल मार्ग है । जिस मार्ग में चतुराई का टेढी चाल की कोई जगह नहीं है। इस मार्ग में सच्चाई का भी अभिमान ठिठक जाता है । इसमें कपटी लोग अपना स्थान नहीं बना पाते हैं। घनानन्द का कहना है कि हे प्यारे सज्जन, इस मार्ग के समान दूसरा कोई मार्ग नहीं है। इस मार्ग का अनुकरण करने वाले का कोई खर्च नहीं लेकिन प्राप्ति सब कुछ हो जाती है l 

व्याख्या करें—यहाँ एक तें. दूसरौं ऑक नहीं।
उत्तर-प्रस्तुत सवैये का अंश हमारे पाठ्यपुस्तक "गोधूली' भाग-2 के काव्य (पद्य) खण्ड के "अति सूधो स्नेह को मारग है" पद से लिया गया है जिसके रचयिता घनानंद हैं। इस पद में कवि ने "प्रेम मार्ग" को सुगम सरल, पवित्र कहते हुए कहा है कि यहाँ एक से दूसरौ आँक नहीं। अर्थात् प्रेम मार्ग के समान कोई दूसरा मार्ग नहीं है। प्रेम मार्ग ही अद्वितीय मार्ग है।

प्रश्न - "मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं" से कवि का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-'मन लेहु पै देह छटाँक नहीं" से कवि घनानंद का अभिप्राय यह है कि "प्रेम मार्ग" ऐसा  मार्ग है जिस पर चलने वाले पथिक को कोई खर्च नहीं लेकिन प्राप्ति सब कुछ किया जा सकता है।  यहाँ मन (40 किलो) और छटॉक (कनमा) जो उस समय मन माप का सबसे बड़ा और छटाँक सबसे छोटा परिमाण माना जाता था।

प्रश्न - कवि कहाँ अपने आँसुओं को पहुंचाना चाहते हैं और क्यों ? 
उत्तर कवि अपने आँसुओं को सज्जन लोगों के आँगन तक पहुँचाना चाहता है क्योंकि सज्जन जन ही कवि को पीड़ा का अनुभव कर सकते हैं, कोई दुष्ट नहीं। इसीलिए कवि की आकांक्षा है कि मेरी पीड़ा सज्जन के आंगन तक पहुँचाकर परोपकारी मेघ मेरी पीड़ा को कम करने में मदद देगा।

प्रश्न - कवि प्रेम मार्ग को "अति सूघो" क्यों कहता है ? इस मार्ग की विशेषता क्या है ?

उत्तर-कवि प्रेम मार्ग को अति सूधो (अत्यन्त शुद्ध सरल) इसलिए कहा है क्योंकि इस मार्ग पर चलकर मनुष्य बिना खर्च किये हुए सब कुछ पा सकता है। इस मार्ग की विशेषता है कि इस मार्ग में सत्य का भी स्वाभिमान समाप्त हो जाता है तथा चतुराई का भी इस मार्ग में कोई स्थान नहीं रहता है।

शब्द निधि:
नेकु = तनिक भी । सयानप = चतुराई । बाँक= टेढ़ापन । आपन पौ = अहंकार, अभिमान । झुझुक = झिझकते हैं । निसाँक = शंकामुक्त । आँक = अंक, चिह्न । परजन्य = बादल । सुधा = रस बरसाओ। परसौ = स्पर्श करो। बिसासी=विश्वासी । मन = मन का एक पैमाना । छटाँक = माप-तौल का एक छोटा पैमाना ।



मो अँसुवानिहिं लै बरसौ। 
मेरे आँसुओं को ही लेकर बरस जाओ। 
पद परिचय-इस सवैये में कवि घनानंद ने मेघ को परोपकारी बताकर आग्रह करता है कि मेरे हृदय की पीड़ा को सज्जन लोगों के घर तक पहुँचा दो। 
भावार्थ - हे मेघ ! परजन्य नाम तुम्हारा सही है क्योंकि परोपकार के लिए ही देह धारण कर घूमते हो । समुद्र जल को भी तुम अमृत जैसा बनाकर अपने रसयुक्त घनानंद का कहना है कि  तुम जीवनदायक हो, कुछ मेरे हृदय की पीड़ा को भी स्पर्श करो। हे विश्वासी किसी भी समय  मेरी पीडारूपी आँसुओं को लेकर सज्जन लोगों के आँगन में बरस जाओ।
प्रश्न - 'मो सवानिहि लै बरसी छंद' किसे संबोधित है और क्यों?
उत्तर-द्वितीय छंद में मेघ को संबोधित किया गया है क्योंकि परजन्य परोपकार हेतु जो जन्म लिया हो कहलाकर मेघ अपने नाम की यथार्थता साबित करने के लिए परोपकार के लिए lघूम-घूमकर कर बरसता है।

प्रश्न - परहित के लिए ही देह कौन धारण करता है ? स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर–परहित के लिए ही देह मेघ धारण करता है। मेघ परोपकारी होता है। घूम-घूमकर लोक हित के लिए बरसता है। इसलिए मेघ का एक नाम "परजन्य" भी है।
व्याख्या करें- कछू मेरियो पीर हिए परसौ। 
उत्तर–प्रस्तुत सवैये का अंश हमारे पाठ्यपुस्तक "गोधूली" भाग-2 के काव्य (पद्य) खण्ड के "मो अँसुवानिहिं लै बरसौ" पद से लिया गया है जिसके रचयिता प्रेममार्गी कवि 'घनानंद" है कवि ने इस पद में मेघ को परोपकारी कहते हुए मेघ से कवि के आँसुओं को परोपकार हेतु लेकर सज्जन के आँगन में बरसाने का आग्रह करता है। इस पद्यांश में कवि की इच्छा है कि जीवनदायक मेघ हमारे हृदय की पीड़ा को भी अपने स्पर्श से सुखकारी बना देगा। क्योंकि मेघ का कार्य ही है दूसरों को सुख पहुँचाना।


कवि परिचय-

रीति काल के रीति मुक्त काव्यधारा के सिरमौर, "प्रेम की पीर" के कवि घनानंद का जन्म 1689 ई. के आस-पास दिल्ली में हुआ था । वे दिल्ली के तत्कालीन मुगल बादशाह मोहम्मद शाह गीले के यहाँ मीरमुंशी का काम करते थे। वे अच्छे गायक और श्रेष्ठ कवि थे। सुना जाता है कि सुजान मामक नर्तकी से इनको प्यार था। कुछ कारण से सुजान के प्रति उनकी विरक्ति हो गई । विराग होने पर वे दिल्ली छोड़कर वृंदावन चले गये। वहाँ वैष्णव बनकर काव्य रचना करने लगे। 1739 ई० में जब लुटेरा नादिरशाह का दिल्ली पर आक्रमण हुआ तो उसके सैनिकों ने वृंदावन पर भी आक्रमण किया। घनानंद भी पकड़े गये । सैनिकों ने उनसे सोना माँगा तो घनानन्द 
ने सिपाहियों के हाथ पर धूल रख दिया। गुस्सा में आकर सैनिकों ने इनको मार दिया । घनांनद  के प्रमुख ग्रन्थ हैं-"सुजान सागर" "विरह लीला", "रस केलि बल्ली" "घन आनंद" आदि घनानंद की काव्य रचना सवैये या घनाक्षरी में हैं तथा इनके काव्यों में प्रेम-राग, प्रेम-विरह दोनों दिखाई पड़ते हैं। इनकी भाषा ब्रजभाषा है l 
भाषा की बात
1.निम्नांकित शब्द कविता में संज्ञा अथवा विशेषण के रूप में प्रयुक्त हैं। इनके प्रकार बताएँ-
सूधो-विशेषण । मारग-संज्ञा । नेकु-संज्ञा । वाँक—विशेषण । कपटी—संज्ञा ।. निसाँक-विशेषण । पाटी-संज्ञा । जथारथ-संज्ञा । जीवनदायक विशेषण । पीर-संज्ञा । हियें-संज्ञा ।
2. कविता में प्रयुक्त अव्यय पदों का चयन करें और उनका अर्थ भी बताएँ।
उत्तर-अव्यय, अर्थ-अति-अधिक, जहाँ-जिस जगह, तहाँ-उस जगह-यहाँ-इस जगह,कछू-कुछ (थोड़ा)
3. निम्नलिखित के कारक स्पष्ट करें-
स्नेह को मारग = सम्बन्ध कारक । प्यारे सुजान कर्मधारय । मेरियौ पीर सम्बन्ध कारक। हियें = सम्बन्ध कारक । अँसुवानिहिं = कर्म कारक । मो = सम्बन्ध कारक।

समाप्त 

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