मंगलवार, 27 अक्टूबर 2020

जीवन है तो मुश्किलें है !




जीवन है तो  मुश्किलें है!

जीवन है तो मुश्किलें है ; और जब तक जीवन रहेंगी मुश्किलें रहेंगी ! यह और बात है की मुश्किलों का स्वरुप हर आयाम के साथ नया और अलग हो जाता है l कहते है ‘ सांसारिक जीवन तूफानी लहर से भरा है जिसमें कर्म और भाग्य की उत्ताल तरंगे मनुष्य को उद्वेलित करती रहती है’ l WHO के 2016 आकड़ें अनुसार 800,000 लोग जीवन के संघर्ष से भाग कर अपना जीवन लीला समाप्त करने का रास्ता अपना लेते है, वही इन आकड़ो में 17% लोग सिर्फ भारत के है, तो सोचने वाली बात यह है की क्या वाकई आत्महत्या करना जीवन में संघर्ष करने से ज्यादा आसान है ? इन तथ्यों पर विचार करने पर कई बातें निकल कर सामने आती है जिस कारण लोग खास कर छात्र आत्महत्या कर जीवन समाप्त कर लेते है -

1. छात्रों में सहनशक्ति की कमी एक बड़ा कारण है l साथ ही... जैसे इम्तिहान में फेल होने का डर प्रेम में नाकामी तथा आर्थिक समस्या l
2. मौजूदा दौर में लगातार प्रतिस्पर्धा और सामाजिक परिवारिक संरचना की असीमित अपेक्षाओं का दबाव
3. बेरोजगारी और असफलता के मार की आत्महत्या का कारण है l
4. वर्तमान समय में परिवार एकाकी हो गए हैं और बच्चों को नाना-नानी दादा-दादी का प्यार और सहारा ना मिला आत्महत्या का कारण माना जा सकता है l आधुनिकरण में आपसी परस्पर संवाद को कमतर किया है l
5.भारतीय समाज में मानसिक अवसाद को बीमारी के रूप में ना देखना भी इसका प्रमुख कारण हैl
6. वर्तमान समय में लोगों का प्रेम और लगाव मानव से कम भौतिक वतुओं से अधिक हो जाना भी एक कारण हो सकता है l

इसका समाधान हो सकता है , इसमें कोई संदेह नहीं है कि जीवन में अगर समस्या है तो उसका समाधान नहीं है l निरंतर गतिशील दुनिया में आज छात्रों को साकारात्मक सोच अपनाने के लिए साथ-साथ अपनी छोटी उपलब्धियों को भी बता देना आवश्यक हैl छात्रों को अपनी क्षमता व जीवन के समय सामंजस्य स्थापित करने की कला को सिखाया जाना चाहिए l 

निष्कर्ष अवसाद और आत्महत्या नहीं दौर की महामारी के रूप में उभर कर सामने आ रहा है आज हम सब को एकजुट होकर इस के प्रति जागरूकता पैदा करनी चाहिए नहीं तो देश के भविष्य कहे जाने वाले छात्रों को इसका भारी धन देना पड़ेगा जो कि अविश्वसनीय होगा l 

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