रविवार, 10 मई 2020

जीवन : एक संग्राम

यह जीवन एक संग्राम है; भाग नहीं सकता कोई इस संग्राम से! लाख जतन कर कोई कितना भी योजना बनाए, करना वहीं पड़ता है जो परिस्थिति तय करती है। फिर यह कहावत चरितार्थ हो जाता है इंसान सोचता कुछ है और करता कुछ है । अब यह वहीं समझ सकता है जो जीवन संग्राम के चक्रव्यूह को एक-एक कर पार कर रहा है।
                  जीवन का बीते वक़्त का हर एक पन्ना पलट कर देखे तो विराम और आराम शून्य मिलता है।
कई अतरंगी सपने सजाए बैठे है आंखो में। अनगिनत ख्वाबों में! और उस सपनों को पूरा करने के लिए एक उच्च कोटि की योजना। अलग अलग उच्च कोटि का उद्देश्य पथ बनता है, कठोर तपस्या, वक़्त को मोड़ देने वाला परिश्रम होता है। पर करना वहीं पड़ता है आखिरकार, जो कालक्रम तय करता है। चले जाना पड़ता है, वक़्त जिस ओर उन्मुख करती है। कर्म स्वतंत्र होकर भी विधि के विधान से मुक्ति नहीं हो पाता है। 
सांसारिक जीवन ज्वार-भाटा से भरा सागर है जिसमें एक छोर पर कर्म और दूसरे छोर पर भाग्य की उत्ताल तरंगों के बीच अपने को स्थापित करने की कोशिश करता रहता है।

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i'msonuamit

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