बुधवार, 15 अप्रैल 2020

शाम मुंडेर पर अटक सी जाती है

इन दिनों 'वक़्त' पहाड़ जैसा हो गया है, सुबह होते ही रोज़ विशाल जल पर्वत सा खड़ा हो जाता है। दिन किसी तरह गुजर तो जाता है, पर शाम मुंडेर पर अटक सी जाती है। रात को ठंडी हवाएं रफ़ी के नगमों के संग कोई पुराना वाकया ढूंड लाता है, फिर मै बैठ कर शून्य में बुझे चांद को देख कर मुस्कुरा लिया करता हूं....... परेशान हो जाता हूं घर बैठ कर, पर उपर वाले को शुक्रिया भी कहने को दिल करता है....इस भागती जिंदगी में मन को सुलझाने का वक़्त मिल गया है !
#iamsonuamit


i'msonuamit

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